संगीत हमारी रूह का खाना है। इसकी ज़ुबान ऐसी है कि दुनिया में कोई भी संगीत सब को भाता है। इसीसे भाईचारा पैदा होता है। हमारी सभ्यता में इसका बहुत बड़ा योगदान है। कोई भी त्यौहार या फंक्शन हो संगीत ज़रूर होता है। इसके बिना सूखा सूखा सा लगता है। लेकिन इसको खुद गाने में जो मज़ा आता है वो बयान नहीं किया जा सकता। आज हिंदुस्तान और सारे दूसरे मुल्कों में कराओके पे गाना कितना आसान हो गया है। कितने ही क्लब बन गए हैं कराओके के लिए। खाना और गाना गाना तो हर शाम को हराभरा कर देता है। जो भी गाता है वो माइक छोड़ने को तैयार नहीं होता। हमेशा कहता है एक और गा लूँ। इस तरह शाम का प्रोग्राम ३ घंटे की बजाय ५ घंटे का हो जाता है। आप जब गाते हैं तो पुरे खो जाते हैं। बहुत से लोगों के लिए यही इबादत है। और सच भी है भगवान को मिलने का सबसे आसान तरीका। संगीत को सुरताल के साथ गाने में है। भगवान मिल जाएंगे। हमारा ऐसा विश्वास है कि जब तक संगीत का अभ्यास और ज्ञान ना हो,आप पूर्णता हासिल नहीं कर सकते हैं। जब तक आप छोटी छोटी बातें नहीं समझेंगे, आप की गायकी में कुछ ना कुछ कमी रह जाएगी। हमे सिर्फ ये बताया जाता है रियाज़ करो - रियाज़ करो - रियाज़ करो लेकिन कैसे? जब तक आप अपने जिस्म के हिस्सों को, जो कि गाने में मदद करते हैं, नहीं समझेंगे, तब तक आप कहीं ना कहीं लुढ़कते रहेंगें।
बदकिस्मती से हमारे मुल्क में कोई नहीं समझता है कि हमारा जिस्म कैसे चलता है। गाने में यह किस तरह काम करता है कौन से पार्ट हमारे जिस्म में इसको परफेक्ट बनाते हैं। सालों साल सीखने के बाद भी ठीक से गाया नहीं जाता क्यों कि ये हमे समझाया नहीं जाता के हमारा जिस्म गाने में किन किन हिस्सों को इस्तेमाल करता है। ना तो इसकी जानकारी है और ना ही बताया जाता है। हम क्यूँ नहीं अच्छा गा सकते? अगर महान कलाकार गा सकते हैं तो हम भी महान कलाकार बन सकते हैं। वो भी तो इंसान थे। मैंने दुनिया में इतने शोज़ किये, आप को यकिन नहीं होगा। १००० से ज़्यादा शोज़ बाहर वाले मुल्कों में किये जैसे, केनिया,युगांडा, तंज़ानिया, ज़ज़ीबार,यू.के.,यु. एस. ए.,कॅनडा,त्रिनिदाद, गयाना (वेस्ट इंडीज), सूरीनाम, मॉरिशियस,दक्षिण अफ्रीका,फ़िजी आइलैंडस,हॉलैंड। सारी ज़िंदगी में १३६५ शोज किये हैं। कलाकार थे रफ़ी साहब,मन्ना डे,हेमंत कुमार,तलत महमूद,सी.एच.आत्मा,मुकेशजी,किशोर कुमार, अनुराधाजी और कविताजी। उन दिनों लताजी और आशाजी स्टेज शोज़ नहीं करती थीं। मैंने ये काम १९५६ में तलत साहब के साथ स्टेज शोज़ शुरू किये थे। और ३५ साल से ज़्यादा शो करता रहा। इन कलाकारों के सैंकड़ों शो देखने से बहुत कुछ सीखा। क्यों कि मैं भी गाने का शौकीन हूँ। मुझे भी कभी कभी इन शोज़ में गाने का मौका मिलता था जब भी कोई कलाकार ८ या १० शोज़ के बाद ज़रा सा गला ख़राब होने पर मुझे गाना पड़ता था २० मिनट गाने के लिए........ शो चलता रहना चाहिए ........ मैं बहुत ही पुराने गाने सहगल साहब और पंकज मलिक के गाता था। लोगों को एक चेंज भी मिलता था और मज़ा भी आता था।
१९८५ के बाद कुछ सेहत ख़राब होने लगी और मैंने २ रेकॉर्डिंग स्टूडियो खोले। हमारे स्टूडियोस में कोई भी आकर गा सकता था। हमने १९८८ से सबसे पहले संगीत ट्रैक बनाये और गाने वालों की मदद भी की। कौन कौन सी मुश्किलें गाने वालों को आती थी उसकी रिसर्च भी शुरू कर दी। जैसे सांस का फूल जाना , पक्का सुर नहीं लगा सकना , ताल से हट जाना , गला सूख जाना , बहुत मुश्किल से गाना , अपनी आवाज को कैसे पकड़कर रखना , बेचैन हो जाना और ठीक से नहीं गा पाना। गाना बरसों सिखने के बाद भी ठीक से ना गा पाना। नाक का उपयोग कैसे करना जरुरी होता है। अपने जिस्म के सारे हिसों को इकट्ठा करके गाना ,ये सब बातें आपको चित्र बनाकर प्रैक्टिकल तरीकेसे समझायी जाएगीं। किस तरह आपका जिस्म अच्छी तरह गाने लगेगा। आप सिर्फ ४ दिनों में तैयार हो जायेंगें। हमने २ लेसन बनाये हैं वीडियो के सहारे। आप पहले विडियो के बाद दूसरा विडियो ४८ घंटों के बाद देख सकते है तांकि आप उसका रियाज़ कर सकें। ४ दिनों में कोर्स ख़त्म हो जायेगा । इस कोर्स की कीमत पांच सौ निन्यानवे रुपए(रु ५९९ /-) है। जो के आप ऑनलाइन जमा कर सकते हैं। पैसा भरने की जानकारी आपको अलग से दी जायेगी।
मेरे ट्रेन किये हुए कम से कम २५ विद्यार्थी इस वक्त हर मुंबई के स्टेज पर हर हफ़्ते प्रोग्राम कर रहे हैं। एक तो इनकम हुई , दूसरा सबकी वाह वाह , परफेक्शन की वजह से आपकी ये इबादत भी हो गयी। हमारी फिल्म इंडस्ट्री के कुछ मशहूर लोगों की चिठियाँ आप पड़ सकते हैं। पहले हम शौबीज़ इंटरप्राइज़ेस एंड स्टूडियोस के नाम से स्टूडियो चलाते थे। लेकिन अब हम वहाँ से रिटायर हो गये। जो विद्या मेरे पास है, आपको देना चाहता हूँ। मैंने आठ साल तक इसकी रिसर्च की थी तब जाकर परफेक्ट हुआ समझाने के लिए। आप मेरे गाये हुए गाने इंटरनेट पर सुन सकते हैं और लिखिए आल सांग्स ऑफ़ नंदी दुग्गल अंग्रेजी में या एल्बम का नाम लिखकर भी सुन सकते हैं। ऑटम शड़ौस - एचएमवी , गिले शिकवे - सीबीएस , हिटस ऑफ़ सी. एच. आत्मा - सीबीएस , “चक्र समय का भजन” सारे दुनियां के रेडियो स्टेशंस को भेज दिए हैं। क्योंकि अब तो दुकान में संगीत नहीं बिकता और कम्पनियाँ बंद हो गई हैं। आप मुझे संदेश भेज सकते हो कोर्स पूरा करने के बाद। में फोन से सैकड़ों संगीत प्रेमियों से बात नहीं कर सकता। जवाब जरूर दूंगा आपका कोर्स समाप्त होने के बाद। सिर्फ अपने गानों की समस्या बतायें।
मैंने ये हमेशा कहा है --- अगर मैं गा सकता हूँ - तो आप क्यूँ नहीं?
धन्यवाद
संगीत ही आनंद है
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